
“नारी“
नारी हूं मैं नारी हूं,
संघर्षो की मारी हूं।
मुझसे है सृष्टि सारी,
फिर भी मैं बेचारी हूं।।
मैं प्रकृति का अनमोल उपहार,
सबकी ममता का आधार।
त्याग करूं चाहे सह लूं कितना,
प्रताड़ित करता फिर भी संसार।।
हर रूप बसा मेरे अंदर,
मैं ही दुर्गा मैं ही ईश्वर।
परिवार की मैं आधार शिला,
मैं ही शीशा मैं ही पत्थर।।
मैं ही वंदन मैं अभिनंदन,
मैं बेवस लाचारी का क्रंदन।
रिश्तों की डोर बंधी मुझसे,
जन्म-जन्म का मैं बंधन।।
हर ग्रंथों में मैं पूजनीया,
मैं सीता सावित्री अनुसुया।
मुझ बिन पूर्ण यज्ञ न होवें,
मैं धर्म शास्त्र की वंदनीया।।
मां, बेटी, बहन बनी नारी
हर रूप में उतरी है नारी।
किस-किस से उसकी तुलना करु,
सुन्दर सुन्दरतम् है नारी।।