
।। दोहा।।
अंगना-अंगना फैल गई सोने जैसी धूप।
शाम वधू सी सज गई धर के रूप अनूप।।
दिशा-दिशा में छा रहा, यूं मदमस्त विलास।
रंगो ने महका दिया, मस्ती का उल्लास।।
गांव गली में बज रहे, देखो ढोल मृदंग।।
चढ़ने लगे हैं भाई, अब होली के रंग।।
खेतों में सरसों खिली, करने लगी किलोल।
अंग अंग में रस भरे, मुस्काए मन मोर।।
सतरंगी चादर ओढ़, धरती बनी दुल्हन।
पतझड़ की डालो पर, पुलक उठा यौवन।।
धरती में छक कर किया, अबीर गुलाल श्रृंगार।
भीनी-भीनी हवा चले, जैसे मलय बयार।।
लहराती बलखाती सी, पिचकारी की धार।
मन बसंती हो गया, पुलक उठा मृदुगात।।