
कविता-सोशल डिस्टेंस
बुरे वक्त की मार झेलना हम सबकी मजबूरी है,
घर में रहना है सबको सोशल डिस्टेंस जरूरी है।
महामारी के बादल है यह कुछ दिन में छठ जाएंगे,
जैसे पहले मिलते थे फिर वैसे ही मिल जाएंगे ,
भय आतंक ना रखो दिलों में खेलो खेल जरूरी है ,
घर में रहना है सबको सोशल डिस्टेंस जरूरी है|
आर्यव्रत की धरती पर कैसा आंतक छाया है
रावण कंस ने गलियों में जाकर उत्पात मचाया है
राम कृष्ण बनके अब, देना उपदेश जरूरी है
घर में रहना है सबको सोशल डिस्टेंस जरूरी है|
काली रजनी बीतेगी फिर नई सुबह भी आएगी
पुष्प सुगंधित हवा चलेगी गुलशन को महक आएगी,
इससे पहले अपने दिलों में रखना संयम जरूरी है,
घर में रहना है सबको सोशल डिस्टेंस जरूरी है|
प्रकृति दे रही दंड स्वयं ही, भोग रही दुनिया सारी ,
विकराल रूप में आई आपदा, जंग हुई कितनी भारी,
प्रकृति के संदेश को सुनना अब मानव बहुत जरूरी है।
घर में रहना है सबको सोशल डिस्टेंस जरूरी है||
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मां से विनती
गांव गांव और शहर शहर में शोर मचा है भारी
न जाने यह कहां से आई कोरोना सी महामारी
कण-कण में तुम विद्यमान हो कुछ अपनी कृपा कर दो
इस दानव जैसी बीमारी से हे सिंह वाहिनी रक्षा कर दो
जब भक्तों पर भीड़ पड़ी हो आकर तुम ही बचाती हो
अबकी बार क्यों देर लगाई क्यों नहीं दर्श दिखाती हो।।
त्राहिमाम- त्राहिमाम करके हर मानव चिल्लाता है
विपदा की इस कठिन घड़ी में दिल मेरा घबराता है
चंड मुंड को मारा तुमने चंडी रूप धरो मैया
दुर्गा काली खप्पर वाली दे दो हमको अपनी छैया
सारी सृष्टि व्याकुल है इस ए दृश्य बीमारी से
आतंक भय से जीवन त्रस्त है दानवी अनाचार से
न जाने तुम कहां छुपी हो दर्श को नैना तरस रहे।
भक्तों ने है टेर लगाई अश्रु सब के बरस रहे
स्वीकार करो यह भाव हमारे एक बार बस आ जाओ
पृथ्वी के सारे दानव को जिव्हा से चट कर जाओ।।