कौन है अपना कौन पराया, किसको नजरों में तोलूं
सभी एक से दुनिया, वाले मैं क्या दुनिया से बोलूं
भोजी सांसे, जख्म भी गहरे, एक उदासी चेहरे पर
एक वियोगिन सी जीवन में, भेद जिया के क्या खोलूं
यादों के पंछी ने आकर, ऐसी गजल सुनाई क्या?
सुध- बुध खो बैठी मैं ऐसी, संग किसी के भी होलूं
बदल गए क्या लोग जहां के, कहां मुरव्वत लोगों में
छूट गई क्या मंजिल अपनी, मैं बनजारिन सी डोलूं
पलक झपकते सपने बिखरे, बिखर गए अल्फाज सभी
पुष्प तुम ही बताओ अब क्या मैं गॹलों में रस घोलूं||

“होली-अपनों की मनुहार, होली की बौछार ‘
हसरतों के दिये जला तो लो।
खफा हैं हमसे उन्हें मना तो लो।।
हमने चाहा है उनको शिद्दत से।
एक बार चाहे आज मां तो लो।।
अलमस्त निगाहें तुम पर उठती हैं,
उनसे दामन को बचा तो लो।।
वक्त ने जख्म दिए न जाने कितने।
रिसते ज़ख्मों को कुछ दवा तो दो।
नदी, ख्वाइश का रुख एक ही है।
पूरी हो जाए ऐसा वक्त तो दो।।
आंख भर आई उनकी बातों से।
गिरते अश्कों को पनाह तो दो।।
हर तरफ ‘पुष्प’ गूंजती है शहनाई।
अपना हमदम हमें बना तो लो।।