
कौन है अपना कौन पराया, किसको नजरों में तोलूं
सभी एक से दुनिया, वाले मैं क्या दुनिया से बोलूं
भोजी सांसे, जख्म भी गहरे, एक उदासी चेहरे पर
एक वियोगिन सी जीवन में, भेद जिया के क्या खोलूं
यादों के पंछी ने आकर, ऐसी गजल सुनाई क्या?
सुध- बुध खो बैठी मैं ऐसी, संग किसी के भी होलूं
बदल गए क्या लोग जहां के, कहां मुरव्वत लोगों में
छूट गई क्या मंजिल अपनी, मैं बनजारिन सी डोलूं
पलक झपकते सपने बिखरे, बिखर गए अल्फाज सभी
पुष्प तुम ही बताओ अब क्या मैं गॹलों में रस घोलूं||